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काला बाग़.kala Baag.The horror tale suspense scary story.Kala Baag काला बाग़.

                     काला बाग़

                  (Horror story)

The horror tale suspense scary story.Kala Baag काला बाग़. काले बाग़ मे आखिर कया था?

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ट्रेन देहरादून के स्टेशन पर पहुँच चुकी थी। यात्रियों ने बाहर निकलना शुरू कर दिया था।छोटा सा पहाड़ी स्टेशन है।मेट्रो सिटी जैसी भीड़ भाड़ नहीं है यहाँ।

उस भूरे बालो वाली पतली दुबली लड़की ने अपना एक इकलौता बैग उठाया और डब्बे से बाहर आ गई।इस पहाड़ी स्टेशन पर पाँव रखते ही उसे एक अजीब सा रोमांच होता है ।
इस भूरे बालों वाली लड़की का नाम दीया हैं।जब से दीदी की शादी यहाँ हुई हैं इसे यहाँ आने का बहाना चाहिए।क्रिसमस की छुटियों मै कॉलेज बंद है।दीदी के बेटे की पहली लोहड़ी हैं।वो ये त्योहार मना कर ही जाएगी।

आज 31 दिसम्बर हैं।गजब की ठण्ड हैं।छोटे से स्टेशन पर यात्री जल्दी ही छट जाते हैं।स्टेशन फिर पहले की तरह शांत हो जाता हैं।वो इधर उधर देखती है।ऑटो वाले पास आ कर पूछ रहे हैं कहाँ जाना है? वो मना कर देती हैं दीदी का घर ज्यादा दूर नहीं है।वैसे कोई लेने आ ही जाता है मगर आज कोई नही आया था।

वो बैग को कंधे पर दुरुस्त करती है और सड़क पर आगे बढ़ती है।कोहरा बढ़ने लगा था। टाइम ज्यादा नहीं हुआ था ।लेकिन पहाड़ों की शामे, रातो जैसी ही होती है।ये सड़क मेन सड़क से अलग है इस लिए ज्यादा आवाजाही नहीं थी।नाम मात्र के वाहन आ जा रहे थे और नाम मात्र के लोग जो कड़कती ठंड के कारण अपने आप मे ही गठरी बने हुये चल रहे थे।

पहाड़ो के ऊँचे नीचे छोटे छोटे रास्ते उसे पसंद है।और पहाड़ो की शामे उसे एक अलग ही दुनिया मे ले जाती है। सड़क के किनारे मुगफली की ठेली लगी है।पास से गुजरते हुये उसे अंगीठी का सेक बड़ा अच्छा लगता है।वो मस्ती मे आगे बढ़ती जा रही थी कि उसे अपने पीछे कदमों की आहट महसूस हुई।दीया ने पीछे मुड़ कर देखा कोई नहीं था। मूँगफली वाला तो काफी पीछे छुट चुका था।वो फिर आगे बढ़ने लगी।

जैसे जैसे वो आगे बढ़ती जा रही थी सड़क सुनसान होती जा रही थी।बस इक्का दुक्का वाहन जो क़भी क़भी सड़क के सन्नाटे को भंग कर जाते थे।बस अब दीदी का घर ज्यादा दूर नहीं था।

उल्टे हाथ की तरफ पुराने गेस्टहाउस की लंबी सी दीवार थी।जिसके ख़त्म होते ही बागो वाला मोड़ शुरू हो जाना था।वो दोनों हाथो को बगल मै दबाये आगे बड़े जा रही थी।वो एक बहुत पुराने नाले के पुल के ऊपर से गुजर रही थी।नाला सालो से सुखा था बस बारिशों मै कभी कभार बहने लगता था।दूसरी तरफ काफी दूर तक घना बाग़ था।विशालकाय पेड़ों की लम्बी लम्बी कतारे जो सर्दीली शाम मै भयानक लग रही थी।वो डरते हुये आगे बड़ रही थी।और मन मै सोच रही थी काश किसी को बुला लिया होता।रोमांच और डर आपस मै गुड़ मुड़ हो गए थे।

कोहरा बढ़ने लगा था।बग़ीचे से आती हुई पहाड़ी टिड्डियों की आवाज माहौल को अजीब सी सनसनाहट से भर रही थी।उसने तेज तेज चलना शुरू कर दिया।बगीचे की तरफ अँधेरा था ।दुसरी तरफ गेस्टहाउस की दीवार से छन् कर आ रही रौशनी नाकाफी थी।आगे जा कर गेस्टहाउस की दीवार भी ख़त्म हो गई अब दूर तक खुला ग्राउंड था।सन सन करती हवा उसके चेहरे से टकराने लगी।

                     

वो दुआ कर रही थी कोई आता जाता दिखे।शायद उसकी सुन ली गई।कोई धुंधली सी छाया उसे नजर आई।कोई था जो काफी फासले पर आगे आगे चल रहा था।उसमें हिम्मत आ गई चाल को उसने कुछ और तेज़ कर दिया।ताकि उस आदिम छवि के साथ चल सके।लेकिन चाल तेज़ करने के बावजूद वो उस तक नहीं पहुँच पा रही थी।अब उसे समय का भान होने लगा।वो काफी देर से चल रही थी रास्ता ख़त्म क्यों नहीं हो रहा।
अब दिमाग ने कहा वो फंस गई है।वो चलने के बजाये भागने लगी।"सुनो.. सुनो..." उसने पुकार लगाई।मगर कोई नहीं मुड़ा।लेकिन वो छाया के करीब पहुँचने लगी थी। कोई तो है।वो नाहक ही परेशान हो रही है।उसके दिमाग़ ने कहा।अब आगे चलती हुई औरत नज़र आ रही थी।
"सुनो आंटी.. आंटी " उसने फिर आवाज लगाई।लेकिन वो औरत नही घुमी ।बस अब वो चार पाँच कदम की दूरी पर थी।वो उसे पकड़ कर रोकने वाली थी।क़ि अचानक ..अब वहाँ कोई औरत नहीं थी।अचानक से वो कहाँ गायब हो गई। दर से उसके कदम लड़खराने लगे। तभी धुंध मै से एक भयानक साया निकला और हवा मै उसके आगे झुल गया।वो जोर से चीख़ी और हवा से तेज़ अंधा धुंध भागने लगी।

वो भागती जा रही थी।अंधा धुंध बस जैसे आँखे पाँव मै उग आई हो क्योंकि दिमाग तो सुन्न होने की कगार पर था। पैर कांप रहे थे।मगर दीदी के घर तक वो पहुँच चुकी थी।

होश आया तो दीदी और जीजा जी पास मै खड़े थे।दीदी परेशान थी। उसने दीदी को सब बताया ।उसे अपना जिस्म अब भी ठंडा महसूस हो रहा था।
"काले बागो के पास से नहीं आना था वहाँ तो.."जीजा जी ने चुप करा दिया दीदी को।

दीदी के घर उसकी तीसरी रात थी।दो रात से दीदी उसके पास ही थी।और काफी हद तक वो ठीक थी।सो दीदी अपने रूम मे चली गई।

रात का दूसरा पहर था।उसकी नींद खुल गई।वो बाथरूम जाने के लिये उठी।लॉबी तक पहुँची तो नज़र ड्रॉइंग रूम मे गई।एक भयानक साया इधर से उधर घूम रहा था।वो सुन्न हो कर वहीं गिर गई।

उसके बाद वहां रहना पॉसिबल नहीं था।माँ ने तुरन्त घर बुलवा लिया था। लेकिन उस औरत के साये ने पीछा नहीं छोड़ा था।वो साया उसे कही भी,किसी मै भी नज़र आ जाता था।उसका जिस्म सूखता जा रहा था।किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था।


पिता जी ने डॉक्टर को दिखाया।माँ ने पंडितों को दिखाया।जो जहाँ कहता वहीं ले जाते।उसके चारो तरफ डर की दीवार खड़ी होती जा रही थी।काला बाग़ बस यही घंटे की तरह बजता रहता था।दीदी ने उसे बहुत टालने की कोशिश की थी मगर माँ को बता दिया था।
काले बाग़ मै एक औरत रहा करती थी।जाने कहाँ से आई थी।माली की बनाई झोंपड़ी मै रहती थी।लोगों को लगता एक अकेली औरत इतने घने बाग़ में कैसे रहती हैं।कुछ लोग तरस खा कर उसके लिये अनाज भिजवाने लगे।कुछ उसे मालन बोलते कुछ काले बागो की मालकिन।
और एक रात काले बाग़ मै आग लग गई।झोपड़ी जल गई।लेकिन मालन कही नहीं गई।लोग कहते है क़ि उसकी आत्मा आज भी काले बागो मै रहती हैं।

फिर एक दिन बहुत कोशिशो के बाद किसी ने एक ताबीज ला कर उसके गले मै डाल दिया।फिर धीरे  धीरे सब सामान्य होने लगा। उसने कॉलेज जाना शुरू किया।ये सब आसान नही था।डर मन मै बैठ जाये तो जल्दी से नहीं निकलता। लेकिन वक्त के साथ सब बेहतर होता जा रहा था।

उसने अपना कॉलेज कंप्लीट किया।  वक़्त के साथ सब सामान्य होने लगा था। तीन साल गुजर चुके थे।अब पिता जी उसके विवाह के बारे मै सोचने लगे थे। और उनकी सोच का नतीजा ये था कि उसके लिये एक अच्छा वर मिल गया।

वो खुश थी। तै समय पर उसका विवाह हो गया।वो शादी कर के अपने घर चली गई।
आज दस साल हो गए।वो अपने घर मै सुखी है।वो रसोई घर मै खाना बना रही हैं।छत पर पड़ोसन से बात कर रही है और कमरे मै पति के साथ.....एक साथ..।



काला बाग़.kala Baag.The horror tale suspense scary story.Kala Baag काला बाग़. काला बाग़.kala Baag.The horror tale suspense scary story.Kala Baag काला बाग़. Reviewed by Sahajjob.in on January 13, 2019 Rating: 5

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