केस नंबर 219.The horror tale suspense scary stories.
Sahajjob.in
January 26, 2019
"पानी क़ी बूंदे उसके चेहरे पर ऐसे चमक रही थी जैसे किसी ने शीशे पर चाँदी बिखेर दी हो।"
केस नंबर 219
( horror story)
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कंपकपाती सर्दी और उस पर बारिश हो जाये तो बस,बस ही हो जाती हैं।मैंने ओवर कोट के नीचे गर्म कपड़े ठूस ठूस कर पहने हुये थे या यूँ कहें कि पत्नी ने पहना दिये थे।शादी के कुछ सालो बाद पत्नी, बच्चों और पति को एक ही तरह से डील करने लगती हैं।ऐसा मेरे साथ भी हो रहा था।मै अक्सर बिना हील हुज्जत के पत्नी की बाते मान लेता हूँ।
मै पिछले 10 मीनट से उस पहाड़ी रेलवे स्टेशन पर चहलकदमी करते हुये उस आदमी का इंतजार कर रहा था जो मुझे लेने आने वाला था। मै यहाँ ऑफिस के काम से आया था।और इस सर्दी मे मुझे उसका इंतजार करना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था।फोन का नेटवर्क गायब था।
पहाड़ी स्टेशनों पर अक़्सर भीड़ ना के बराबर ही होती हैं।एक ट्रेन मुझे छोड़ कर जा चुकि थी दूसरी सुबह 5 बजे जाने वाली थी।स्टेशन पर अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था।ये एक पहाड़ी रेलवे स्टेशन था।इक्का-दुक्का लोग इधर उधर आ जा रहे थे।
मुझे चाय की तलब महसूस होने लगी।मै स्टेशन पर थोड़ा आगे बड़ा कोने मे कुछ लोग आग ताप रहे थे।मेरा जी चाहा की थोड़ी देर आग ताप लूँ मगर चाय की तलब मुझे आगे टी-स्टॉल तक ले गयी।मैने चाय का ऑर्डर दिया और फिर से मोबाइल मे नेटवर्क ट्राई करने लगा।
गर्म गर्म चाय अंदर गई तो कुछ राहत मिली।मै सोचने लगा वो क्यों नहीं आया ?इतनी सर्दी मे अगर होटल ढूँढना पड़ा तो कितनी मुसीबत होगी।मै होटल ढूढ़ने के मुड मे नहीं था।चाय पी कर मै स्टेशन के बाहर आ कर खड़ा हो गया।बर्फ पड़ने लगी थी।मै कुछ सोच ही रहा था कि किसी के पुकारने की आवाज आई।एक नीले रंग की कार ठीक मेरे सामने आ कर रुकी।कोई मुझे पुकार रहा था। वकील साहब....वकील साहब..
मै कार के पास आ गया।कार के अंदर एक युवा महिला बैठी हुईं थी।उसने जींस और ऊनी टॉप पहना हुआ था।सिर पर केप पहन रखी थी गले मे मफ़लर।वो गाड़ी से बाहर आ गई।मुझे लग रहा था क़ि इस महिला को कही देखा हैं लेकिन कहाँ ?मै कुछ शर्मिंदा सा उसकी तरफ देखने लगा और वो मुस्कराते हुये मुझे मौका देने लगी।हम दोनों के बीच कुछ पल ऐसे ही बीत गए।
मेरी तरफ से कोई जवाब ना पा कर वो थोड़ा और पास आ गई बाहों को एक दूसरे मे बाँध कर मुस्कराते हुये अपना परिचय देने लगी।और सुन कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया।मेरे दिमाग मे करंट दौड़ गया।" केस नंबर 219 ,मिसेज सक्सेना....ओह माई गॉड..." मेरा दिमाग देखे सुने को मानने से इंकार कर रहा था।
मिसेज सक्सेना तो अपनी उम्र से भी 10 साल अधिक दिखने वाली ,एक निराश सी दुखी महिला थी।उनका एक केस मेरे पास कई साल चला ।जब भी पेशी पर वो आती अस्त व्यस्त हालत मे ही होती ।उनकी बेचैनी,पीड़ा,दुःख और निराशा उनके कहे बिना ही चेहरे से बयान होती।इतने वर्षो तक उनके सम्पर्क मे रहने के बावजूद मै उन्हें न पहचानु ऐसा कैसे हो सकता हैं ? मेरी अजीब सी हालत हो चली थी।जिसे देख कर वो जोर से हँस पड़ी।मिसेज सक्सेना और हँसी ? उनका तो हँसी से दूर का भी कोई वास्ता नहीं था।एक बार उन्हें रिलेक्स करने की कोशिश की थी तो वो देर तक रोती ही रही थी उस दिन मैने कानो को हाथ लगा लिया था।
"आप..यहाँ कैसे ?..कितनी बदल गई हैं आप"...मै मुश्किल से इतना ही कह पाया। जवाब मे फिर दिलकश हँसी..।
"बस ,बदलना ही था एक जिद्द थी खुद से..आइये मेरे साथ चलिये ,आपको अपना घर दिखाती हूँ "उन्होंने खनकती हुई आवाज मे साधिकार कहा मुझे ऐसे लगा जेसे कानों के पास सुरीली घंटियाँ बज रही हो।हल्का सा नशा मुझ पर तारी होने लगा था।बर्फ के कण हम दोनों पर जमने लगे थे।
उन्होंने चमकीली आँखो से मुस्कराते हुये गाड़ी का दरवाजा खोल दिया और मै किसी जादू मे बंधा गाड़ी के अंदर बैठ गया
मिसेज सक्सेना को अपने घर का बढ़ा चाव था।हमेशा कहती थी" वकील साहब एक घर बन जाये तो सरे दुख दूर हो जायेंगे, लोग साल भर मे ही घर ख़ाली करवा लेते हैं।बार बार इधर उधर भटकना परता हैं।" मै सोच रहा था मकान के साथ गाड़ी भी ले ली।बीते वर्षों मे काफी तरक्की कर ली हैं।वो काफी सधे हाथो से गाड़ी ड्राइव कर रही थी।
गाड़ी एक शानदार कोठी के आगे रुकी तो मेरा धयान टूटा।मौसम बहुत ठंडा था। हम अंदर आ गए।मुझे सोफे पर बिठा कर वो जल्दी से गरमा गर्म चाय बना लाई।चाय पीते पीते वो बीते सालो की बाते बताने लगी।कुछ मेरी समझ मे आया कुछ नहीं।
चाय पीने के बाद वो घर दिखाने लगी ।काफी बढ़ा और खूबसूरत घर था।मै सब कुछ ऐसे देख सुन रहा था मानो किसी नशे मै गुम हूँ।मकान बनना कोई बड़ी बात नहीं थी।वो बता रही थी बेटा इंजीनियर बन गया हैं।मेरे लिये ताज्जुब का विषय था मिसेज सक्सेना की पर्सनालिटी, जो इतनी बदल गई थी क़ि मुझे हजम नहीं हो पा रही थी।
घर के कोने पर एक गिटार रखा हुआ था।मैने यूँ ही पूछ लिया ये कौन बजाता हैं? बस एक नई गाँठ मेरे सामने खुलने लगी।गिटार की धुन माहोल को रोमानी बनाने लगी।क्या इनसनो का भी रिसाइकल होता हैं ? मै एक अलग ही दुनियां मे था।सालो बाद मै भी एक रूटीन लाइफ से बाहर आ रहा था।
"आप इतना कुछ कर लेती हैं,मुझे पता नहीं था।" मेरे मुँह से निकला। वो मुस्कराती हुई खाने की तयारी मे लग गई।कुछ ही देर मे टेबल पर खाना लगा हुआ था। इतना स्वादिष्ट खाना ?सच मे कोई मशीन हैं, जिसमें मिसेज सक्सेना ने खुद को रिसाइकल किया हैं।मै मन ही मन सोच रहा था " काश वक़्त यही रुक जाये।
खाना खाने के बाद मै फ़ायर् प्लेस के पास आ कर बैठ गया।मैने अभी तक फायर प्लेस फिल्मो मे ही देखा था।बेहद खूबसूरत घर था वो और एक दम साफ सुथरा।जैसे कोई फिल्म का सेट हो जितनी चीजो की जरुरत हो उतनी ही रखी हुई थी।
मिसेज सक्सेना कॉफी ले कर पास बैठ गई।आग की तपिश उनके चेहरे पर पड़ कर उसे दहका रही थी और मुझे बहका..
सालो बाद मेरे अंदर ये मीठा अहसास जग था।जो भला सा लगा। घड़ी की सूइयां टिक टिक करती हुई आगे बड़ रही थी मेरा जी चाहा उन्हें रोक दूँ।
उन्होंने आग के पास ही कालीन पर गद्दा बिछा दिया और कम्बल ले कर बैठ गई।इशारे से मुझे पास मे बैठने को कहा।फिर एक नई गाँठ खुल गई।अँगारों से चिंगारियां निकलने लगी थी।ताप ज्यादा बड़ गया था।एक महक सी उठने लगी थी।मेरी नज़र गुस्ताख़ हो कर वही अटक गई थी।वो मुस्करा दी।
"क्या देख रहे हैं? बस खुद को हवा दे रही हूँ.. सालों तक डब्बे मे बंद हुये हुये सड़ने लगी थी..."
वो कहती जा रही थी मै सुनता जा रहा था।आज उसके बोलने मे भी संगीत था।उफ़ बला की खूबसूरती थी उस आलम मे। जाने कब मेरी आँखे बंद होने लगी ।बाहर बर्फ अब भी गिर रही थी।
सुबह नींद खुली तो वो मुस्कराते हुये सामने खड़ी थी।आधे गीले आधे सूखे बाल कंधे पर बिखरे हुए थे।सफ़ेद शफ्फाक चेहरे पर पानी की बुँदे ऐसे लग रही थी जैसे शीशे पर चाँदी बिखर गई हो।मै हकीकत मे भी सपने मे था।
"उठिये वकील साहब ..घुटने तक बर्फ पड़ी है.. जो जरुरी ना हो तो मत जाइये.."
मन तो मेरा भी नही था लेकिन जरुरी काम था और ना जाता तो सारा दिन काम दिमाग मे ही फसा रहता सो मै मन मार कर उठ गया।
नाश्ता कर के मै तैयार हो गया। उसने बताया गाड़ी नहीं जा पायेगी बर्फ से रास्ते चोक है लेकिन गली के बाहर रिक्शा मिल जायेगा। वो दरवाजे तक छोड़ने आई।नारंगी साड़ी पर घुटनों तक लंबा सफेद स्वेटर पहने थी।
" जो आप शाम को लौट कर यहाँ आयेंगे तो आपको एक सरप्राइज दूँगी.." उसके चेहरे पर रहस्मयी मुस्कान थी।
मै उसके बुलाने से पहले ही तैयार था आने के लिये।
मिटिंग मे मेरा मन नही लगा। मै जान ने को उत्सुक था क़ि आखिर सरप्राइज क्या है।अब तक जो हो रहा था ।मिसेज सक्सेना अपनी उम्र को मात दे रही थी साथ ही अपनी आदतों और व्यवहार को भी। मैने जल्दी जल्दी काम निबटाया और उसी दरवाजे पर पहुँच गया।इस उम्मीद से क़ी वो जादुई चेहरा मुझे फिर से दिखाई देगा।
लेकिन... उम्मीद से परे दरवाजा किसी और ने खोला।वो मिसेज सक्सेना का बेटा था।उसने मुझे पहचान लिया और आदर पूर्वक अंदर ले गया।मै निराश हो गया।उस खूबसूरत सपने के बीच मे किसी तीसरे की एंट्री मुझे पसंद नहीं आई।लेकिन प्रतक्ष में हम दोनों बाते करने लगे।
टिक टिक कर के कुछ मिनट निकल गए।मुझसे रहा नहीं गया तो मैने पूछ लिया।
" मिसेज सक्सेना कही नज़र नहीं आ रही।" मेरी आवाज में आतुरता थी।
" माँ को गुजरे हुये दो साल हो गए,लेकिन लगता है आज भी वो यही हैं " उसने गहन उदासी से कहा।और मुझे लगा पास ही कही भयानक बम विस्फोट हुआ।मेरा मुँह खुला का खुला रह गया।दिल मे इतनी तकलीफ मैने आज तक महसूस नहीं की थी।
उनके लड़के ने सामने लगी तस्वीर की तरफ इशारा किया जिस पर हार चढ़ा हुआ था।हम आधी रात तक वहीँ बेठे थे तब वो तस्वीर वहाँ नहीं थी।मेरे दिल ने कहा दोनों माँ बेटा मिल कर मजाक कर रहे हैं।
अनमना सा इंतजार करते हुये सारी रात बीत गई।मै फायर प्लेस के पास बैठा रहा।
क्या तुम सच कह रहे हो? कल तुम्हारी माँ यहीं थी।" मैने कहना चाह लेकिन जबान तालू से चिपक गई।शायद वो नहीं चाहती थी क़ि उस अनोखे सपने का जिक्र मे किसी से करू।
उनका बेटा मुझे स्टेशन छोड़ गया।मै बहुत उदास था मेरी नज़र खिड़की से बाहर गई।वो खड़ी मुस्करा रही थी और कुछ पल मे धुंद मे समां गई।गाड़ी चल पड़ी थी।स्टेशन पीछे छुट रहा था।बर्फ अब भी गिर रही थी और एक पर्त मेरे दिल पर जमती जा रही थी।
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मै पिछले 10 मीनट से उस पहाड़ी रेलवे स्टेशन पर चहलकदमी करते हुये उस आदमी का इंतजार कर रहा था जो मुझे लेने आने वाला था। मै यहाँ ऑफिस के काम से आया था।और इस सर्दी मे मुझे उसका इंतजार करना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था।फोन का नेटवर्क गायब था।
पहाड़ी स्टेशनों पर अक़्सर भीड़ ना के बराबर ही होती हैं।एक ट्रेन मुझे छोड़ कर जा चुकि थी दूसरी सुबह 5 बजे जाने वाली थी।स्टेशन पर अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था।ये एक पहाड़ी रेलवे स्टेशन था।इक्का-दुक्का लोग इधर उधर आ जा रहे थे।
मुझे चाय की तलब महसूस होने लगी।मै स्टेशन पर थोड़ा आगे बड़ा कोने मे कुछ लोग आग ताप रहे थे।मेरा जी चाहा की थोड़ी देर आग ताप लूँ मगर चाय की तलब मुझे आगे टी-स्टॉल तक ले गयी।मैने चाय का ऑर्डर दिया और फिर से मोबाइल मे नेटवर्क ट्राई करने लगा।
गर्म गर्म चाय अंदर गई तो कुछ राहत मिली।मै सोचने लगा वो क्यों नहीं आया ?इतनी सर्दी मे अगर होटल ढूँढना पड़ा तो कितनी मुसीबत होगी।मै होटल ढूढ़ने के मुड मे नहीं था।चाय पी कर मै स्टेशन के बाहर आ कर खड़ा हो गया।बर्फ पड़ने लगी थी।मै कुछ सोच ही रहा था कि किसी के पुकारने की आवाज आई।एक नीले रंग की कार ठीक मेरे सामने आ कर रुकी।कोई मुझे पुकार रहा था। वकील साहब....वकील साहब..
मै कार के पास आ गया।कार के अंदर एक युवा महिला बैठी हुईं थी।उसने जींस और ऊनी टॉप पहना हुआ था।सिर पर केप पहन रखी थी गले मे मफ़लर।वो गाड़ी से बाहर आ गई।मुझे लग रहा था क़ि इस महिला को कही देखा हैं लेकिन कहाँ ?मै कुछ शर्मिंदा सा उसकी तरफ देखने लगा और वो मुस्कराते हुये मुझे मौका देने लगी।हम दोनों के बीच कुछ पल ऐसे ही बीत गए।
मेरी तरफ से कोई जवाब ना पा कर वो थोड़ा और पास आ गई बाहों को एक दूसरे मे बाँध कर मुस्कराते हुये अपना परिचय देने लगी।और सुन कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया।मेरे दिमाग मे करंट दौड़ गया।" केस नंबर 219 ,मिसेज सक्सेना....ओह माई गॉड..." मेरा दिमाग देखे सुने को मानने से इंकार कर रहा था।
मिसेज सक्सेना तो अपनी उम्र से भी 10 साल अधिक दिखने वाली ,एक निराश सी दुखी महिला थी।उनका एक केस मेरे पास कई साल चला ।जब भी पेशी पर वो आती अस्त व्यस्त हालत मे ही होती ।उनकी बेचैनी,पीड़ा,दुःख और निराशा उनके कहे बिना ही चेहरे से बयान होती।इतने वर्षो तक उनके सम्पर्क मे रहने के बावजूद मै उन्हें न पहचानु ऐसा कैसे हो सकता हैं ? मेरी अजीब सी हालत हो चली थी।जिसे देख कर वो जोर से हँस पड़ी।मिसेज सक्सेना और हँसी ? उनका तो हँसी से दूर का भी कोई वास्ता नहीं था।एक बार उन्हें रिलेक्स करने की कोशिश की थी तो वो देर तक रोती ही रही थी उस दिन मैने कानो को हाथ लगा लिया था।
"आप..यहाँ कैसे ?..कितनी बदल गई हैं आप"...मै मुश्किल से इतना ही कह पाया। जवाब मे फिर दिलकश हँसी..।
"बस ,बदलना ही था एक जिद्द थी खुद से..आइये मेरे साथ चलिये ,आपको अपना घर दिखाती हूँ "उन्होंने खनकती हुई आवाज मे साधिकार कहा मुझे ऐसे लगा जेसे कानों के पास सुरीली घंटियाँ बज रही हो।हल्का सा नशा मुझ पर तारी होने लगा था।बर्फ के कण हम दोनों पर जमने लगे थे।
उन्होंने चमकीली आँखो से मुस्कराते हुये गाड़ी का दरवाजा खोल दिया और मै किसी जादू मे बंधा गाड़ी के अंदर बैठ गया
मिसेज सक्सेना को अपने घर का बढ़ा चाव था।हमेशा कहती थी" वकील साहब एक घर बन जाये तो सरे दुख दूर हो जायेंगे, लोग साल भर मे ही घर ख़ाली करवा लेते हैं।बार बार इधर उधर भटकना परता हैं।" मै सोच रहा था मकान के साथ गाड़ी भी ले ली।बीते वर्षों मे काफी तरक्की कर ली हैं।वो काफी सधे हाथो से गाड़ी ड्राइव कर रही थी।
गाड़ी एक शानदार कोठी के आगे रुकी तो मेरा धयान टूटा।मौसम बहुत ठंडा था। हम अंदर आ गए।मुझे सोफे पर बिठा कर वो जल्दी से गरमा गर्म चाय बना लाई।चाय पीते पीते वो बीते सालो की बाते बताने लगी।कुछ मेरी समझ मे आया कुछ नहीं।
चाय पीने के बाद वो घर दिखाने लगी ।काफी बढ़ा और खूबसूरत घर था।मै सब कुछ ऐसे देख सुन रहा था मानो किसी नशे मै गुम हूँ।मकान बनना कोई बड़ी बात नहीं थी।वो बता रही थी बेटा इंजीनियर बन गया हैं।मेरे लिये ताज्जुब का विषय था मिसेज सक्सेना की पर्सनालिटी, जो इतनी बदल गई थी क़ि मुझे हजम नहीं हो पा रही थी।
घर के कोने पर एक गिटार रखा हुआ था।मैने यूँ ही पूछ लिया ये कौन बजाता हैं? बस एक नई गाँठ मेरे सामने खुलने लगी।गिटार की धुन माहोल को रोमानी बनाने लगी।क्या इनसनो का भी रिसाइकल होता हैं ? मै एक अलग ही दुनियां मे था।सालो बाद मै भी एक रूटीन लाइफ से बाहर आ रहा था।
"आप इतना कुछ कर लेती हैं,मुझे पता नहीं था।" मेरे मुँह से निकला। वो मुस्कराती हुई खाने की तयारी मे लग गई।कुछ ही देर मे टेबल पर खाना लगा हुआ था। इतना स्वादिष्ट खाना ?सच मे कोई मशीन हैं, जिसमें मिसेज सक्सेना ने खुद को रिसाइकल किया हैं।मै मन ही मन सोच रहा था " काश वक़्त यही रुक जाये।
खाना खाने के बाद मै फ़ायर् प्लेस के पास आ कर बैठ गया।मैने अभी तक फायर प्लेस फिल्मो मे ही देखा था।बेहद खूबसूरत घर था वो और एक दम साफ सुथरा।जैसे कोई फिल्म का सेट हो जितनी चीजो की जरुरत हो उतनी ही रखी हुई थी।
मिसेज सक्सेना कॉफी ले कर पास बैठ गई।आग की तपिश उनके चेहरे पर पड़ कर उसे दहका रही थी और मुझे बहका..
सालो बाद मेरे अंदर ये मीठा अहसास जग था।जो भला सा लगा। घड़ी की सूइयां टिक टिक करती हुई आगे बड़ रही थी मेरा जी चाहा उन्हें रोक दूँ।
उन्होंने आग के पास ही कालीन पर गद्दा बिछा दिया और कम्बल ले कर बैठ गई।इशारे से मुझे पास मे बैठने को कहा।फिर एक नई गाँठ खुल गई।अँगारों से चिंगारियां निकलने लगी थी।ताप ज्यादा बड़ गया था।एक महक सी उठने लगी थी।मेरी नज़र गुस्ताख़ हो कर वही अटक गई थी।वो मुस्करा दी।
"क्या देख रहे हैं? बस खुद को हवा दे रही हूँ.. सालों तक डब्बे मे बंद हुये हुये सड़ने लगी थी..."
वो कहती जा रही थी मै सुनता जा रहा था।आज उसके बोलने मे भी संगीत था।उफ़ बला की खूबसूरती थी उस आलम मे। जाने कब मेरी आँखे बंद होने लगी ।बाहर बर्फ अब भी गिर रही थी।
सुबह नींद खुली तो वो मुस्कराते हुये सामने खड़ी थी।आधे गीले आधे सूखे बाल कंधे पर बिखरे हुए थे।सफ़ेद शफ्फाक चेहरे पर पानी की बुँदे ऐसे लग रही थी जैसे शीशे पर चाँदी बिखर गई हो।मै हकीकत मे भी सपने मे था।
"उठिये वकील साहब ..घुटने तक बर्फ पड़ी है.. जो जरुरी ना हो तो मत जाइये.."
मन तो मेरा भी नही था लेकिन जरुरी काम था और ना जाता तो सारा दिन काम दिमाग मे ही फसा रहता सो मै मन मार कर उठ गया।
नाश्ता कर के मै तैयार हो गया। उसने बताया गाड़ी नहीं जा पायेगी बर्फ से रास्ते चोक है लेकिन गली के बाहर रिक्शा मिल जायेगा। वो दरवाजे तक छोड़ने आई।नारंगी साड़ी पर घुटनों तक लंबा सफेद स्वेटर पहने थी।
" जो आप शाम को लौट कर यहाँ आयेंगे तो आपको एक सरप्राइज दूँगी.." उसके चेहरे पर रहस्मयी मुस्कान थी।
मै उसके बुलाने से पहले ही तैयार था आने के लिये।
मिटिंग मे मेरा मन नही लगा। मै जान ने को उत्सुक था क़ि आखिर सरप्राइज क्या है।अब तक जो हो रहा था ।मिसेज सक्सेना अपनी उम्र को मात दे रही थी साथ ही अपनी आदतों और व्यवहार को भी। मैने जल्दी जल्दी काम निबटाया और उसी दरवाजे पर पहुँच गया।इस उम्मीद से क़ी वो जादुई चेहरा मुझे फिर से दिखाई देगा।
लेकिन... उम्मीद से परे दरवाजा किसी और ने खोला।वो मिसेज सक्सेना का बेटा था।उसने मुझे पहचान लिया और आदर पूर्वक अंदर ले गया।मै निराश हो गया।उस खूबसूरत सपने के बीच मे किसी तीसरे की एंट्री मुझे पसंद नहीं आई।लेकिन प्रतक्ष में हम दोनों बाते करने लगे।
टिक टिक कर के कुछ मिनट निकल गए।मुझसे रहा नहीं गया तो मैने पूछ लिया।
" मिसेज सक्सेना कही नज़र नहीं आ रही।" मेरी आवाज में आतुरता थी।
" माँ को गुजरे हुये दो साल हो गए,लेकिन लगता है आज भी वो यही हैं " उसने गहन उदासी से कहा।और मुझे लगा पास ही कही भयानक बम विस्फोट हुआ।मेरा मुँह खुला का खुला रह गया।दिल मे इतनी तकलीफ मैने आज तक महसूस नहीं की थी।
उनके लड़के ने सामने लगी तस्वीर की तरफ इशारा किया जिस पर हार चढ़ा हुआ था।हम आधी रात तक वहीँ बेठे थे तब वो तस्वीर वहाँ नहीं थी।मेरे दिल ने कहा दोनों माँ बेटा मिल कर मजाक कर रहे हैं।
अनमना सा इंतजार करते हुये सारी रात बीत गई।मै फायर प्लेस के पास बैठा रहा।
क्या तुम सच कह रहे हो? कल तुम्हारी माँ यहीं थी।" मैने कहना चाह लेकिन जबान तालू से चिपक गई।शायद वो नहीं चाहती थी क़ि उस अनोखे सपने का जिक्र मे किसी से करू।
उनका बेटा मुझे स्टेशन छोड़ गया।मै बहुत उदास था मेरी नज़र खिड़की से बाहर गई।वो खड़ी मुस्करा रही थी और कुछ पल मे धुंद मे समां गई।गाड़ी चल पड़ी थी।स्टेशन पीछे छुट रहा था।बर्फ अब भी गिर रही थी और एक पर्त मेरे दिल पर जमती जा रही थी।
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January 26, 2019
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